Wednesday, September 10, 2014

वन ही में जाय हरि ने कुटि रे बनाई (van me hi jaay hari ne kuti re banayi)

वन ही में जाय हरि ने कुटि रे बनाई
कुटि रे बनाई, हरि ने कुटि रे बनाई
वन ही में जाय हरि ने कुटि रे बनाई

१) अरे भोज पत्र बनी मढ़ईया (झोपड़ी)
चंदन बल्ली लगाई, रामा चंदन बल्ली लगाई
हरियल बाड़ी बोय दयि है
उस दिन से मृग चुग चुग जाय, अरे चुग चुग जाय
वन ही में जाय हरि ने कुटि रे बनाई

२) राम लखन दौ मिल कर बैठे
सीता बात चलाई, रामा सीता बात चलाई
हरियल बाड़ी मृगा चुग गयो
मृगा की खाल स्वामी मेरे मन भाई, स्वामी मेरे मन भाई
वन ही में जाय हरि ने कुटि रे बनाई

३) इतने वचन सुने सीता के
धनुष बाण लिए कर में, रामा धनुष बाण लिए कर में
धनुष बाण लिए कर में थाडे
चोकस रहना मेरे छोटे भाई, मेरे लक्ष्मण भाई
वन ही में जाय हरि ने कुटि रे बनाई

४) दूर जाय के मृगा मारा
हा हा कार सुनाई, रामा हा हा कार सुनाई
सीता जी यों उठ बोली
अब विरन की देवर करो रे सहाय, देवर करो रे सहाय
वन ही में जाय हरि ने कुटि रे बनाई

५) मृगा मार राम घर आए
सुनी मढ़ईया पाई, रामा सुनी मढ़ईया पाई
तुलसीदास आस रघुवर की
सिया को बतादे मेरे छोटे भाई, मेरे लक्ष्मण भाई
वन ही में जाय हरि ने कुटि रे बनाई




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